Tuesday, June 15, 2010

विकल्प

जैसे ही उसे यह खबर मिली कि सरकार ने बाल श्रम पर रोक लगा दी है और अब वह ऐसे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर विषेश ध्यान देगी, तो उसका चेहरा खिल उठा। वह बीड़ियों का बंडल फर्ष पर ही छोड़कर कंपनी से भाग खड़ा हुआ। घर पहुंचकर जब उसने अपनी विधवा और विकलांग मॉं को यह खबर सुनाई तो एक पल तो वह भी खुषी से फूली नही समाई पर अगले ही पल उसका चेहरा मुरझा गया। जब बेटे ने मॉं से उसके मायूस होने का कारण पूछा तो वह कुछ सकुचाते हुए बोली, ‘बेटे! जब सरकार तुझसे काम छुड़वाकर तुझे स्कूल भेज देगी तो फिर हमारे पेट की आग कौन बुझाएगा?’ कुछ देर तक झोंपड़ी में खामोषी छाई रही। फिर अचानक मॉं खुद ही बोली,‘बेटेे कोई बात नहीं, मैं कोई काम तो कर नहीं सकती पर तुम स्कूल जाते समय मुझेे षंकर जी के मंदिर के बाहर बैठाल दिया करना। वहॉं दिन भर में कुछ न कुछ भीख तो मिल ही जाया करेगी। कम से कम घर का खर्च तो थोडा़-बहुत चल ही जाएगा।’ नहीं मॉं, ‘मेरे जीते जी तू क्यों भीख मांगेगी। पढ़ाई-लिखाई का क्या, पहले तो हमें अपना पेट ही भरना है अतः मैं खुद ही मंदिर पर जाकर बैठ जाया करूंगा। वैसे भी भीख मांगना तो बाल श्रम में आता भी नहीं है।’ और फिर इसके साथ ही वह मंदिर जाने की तैयारी में लग गया।

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