अब स्वप्न भी नहीं आते
नीले समुंदर में मछलियों की तरह
अठखेलियॉं करने के
या पक्षियों की तरह पंख फैलाकर
दूर गगन में उन्मुक्त उड़ान भरने के
और या रंग-बिरंगे परिधानों में सजी
परियों के साथ चॉंद पर विचरण करने के।
अब स्वप्न आते हैं भी तो बस
दो जून की रोटी के
मुन्ने की फीस और पत्नी की फटी धोती के
दहेज़ के अभाव में अनब्याही
मुनिया की ढलती उम्र
स्वप्न में भी जगाए रखती है
पूरी रात
नहीं होती अब स्वप्न में भी
कोई दिल बहलाने वाली बात।
बदरंग फाइलों की ढ़ेर
और कड़ी मेहनत के बावजू़द
बॉस की बेवजह गुर्राई ऑंखें
स्वप्न तक पहुच जाती हैं
इस प्रकार दिन भर की थकान
वहॉं भी नहीं उतर पाती है
खेल नहीं पाते हम वहॉं भी
सुख-सुविधाओं की कोई पारी
पीछा नहीं छोड़ती स्वप्न में भी
भूख, ग़रीबी, बेबसी और लाचारी