Monday, July 11, 2011

दो लघुकथाएं:-


परिणाम

दैनिक मज़दूरी पर लगे उस बच्चे को बाल श्रम से मुक्त कराए जाने के लिए जिस दिन उस समाज सेवी की पीठ ठोकी जा रही थी, उस दिन उस बच्चे और उसकी विधवा मॉं को भूखे पेट ही सोना पड़ा था।

माहौल

अपने पड़ोस में एक रिक्शे वाले को बसता देख उसका माथा ठनका। उसने सोचा, ‘उसके घर में तो पहले से ही आए दिन छोटे-मोटे घरेलू झगड़े होते रहते हैं, अब इस रिक्शे वाले के पड़ौस में आ जाने से तो माहौल और भी खराब हो जाएगा। रिक्शे-तांगे वाले तो बिना खाए-पिए और लड़े-झगड़े घर में रह ही नहीं सकते। यह भी रोज़ाना दारू पीकर घर में लड़े-झगड़ेगा और मेरे घर-परिवार का माहौल और खराब होगा।’
वह एक सप्ताह तक इसी तनाव से ग्रस्त रहते हुए ईश्वर से प्रार्थना करता रहा कि वह जल्द से जल्द इस रिक्शे वाले को उसके घर से दूर पहुंचा दे।
और उस दिन जब उसने रिक्शे वाले को कमरा खाली करके अपने बीबी-बच्चों के साथ अन्यत्र जाते देखा तो वह खुषी से फूला नहीं समाया। कौतूहलवश जब उसने एक अन्य रिक्शे वाले से उसके इस तरह से अचानक कमरा खाली करके दूसरी जगह जाने की बाबत पूछा तो वह बोला,‘साहब जहॉं तक मुझे पता चला है कि वह यहॉं आकर बहुत दुखी था। दरअसल वह यहॉं यह सोचकर आया था कि उसे संभ्रांत लोगों के इस मोहल्ले में कुछ अच्छा माहौल मिलेगा और वह अपने बीबी-बच्चों की परवरिश अच्छे ढंग से कर सकेगा परन्तु किसी पड़ौसी की आए दिन की घरेलू लड़ाई-झगड़ों ने उसे यहॉं चौन से रहने ही नहीं दिया। अब तुम्ही बताओ बाबूजी, इस तरह के लड़ाई-झगड़े वाले माहौल में कोई शरीफ आदमी भला कैसे रह सकता है। कहीं पड़ौसी के घर की लड़ाई-झगड़े का असर उसके घर तक पहुच जाता तो वह ग़रीब बेचारा तो कहीं का नहीं रहता।’