Thursday, April 21, 2011

विवशता











मां का

परदेश में

नौकरी कर रहे

बेटे से मिलने जाना

या

बेटे का

मां से मिलने आना

अब दोनों के समय

और मन पर नहीं

रेल रिजर्वेशन पर

निर्भर है।

Thursday, April 7, 2011

घटे वही जो राशिफल बताए...... (राष्ट्र-किंकर पत्रिका के वर्ष प्रतिपदा विशेषांक, 2068 में प्रकाशित मेरा व्यंग्य)




मुझे बचपन से ही पत्र-पत्रिकायें पढ़ने का क्रांतिकारी शौक रहा है। पत्र-पत्रिकाओं में लिखी बातों के प्रति मैं सदैव गंभीर भी रहा हॅंू। मेरे एक शोध के अनुसार, एक-दूसरे प्रकाशन में तमाम भिन्नताओं और अपने आपको आधुनिक दिखाने की होड़ के बावज़ूद ज़्यादातर पत्र-पत्रिकाओं में राशिफल यानी दैनिक भविष्यफल का प्रकाशन अवश्य किया जाता है। करोड़ों, अरबों की जनसंख्या वाली इस दुनियॉ के सभी लोगों का भविष्य मात्र 12 राशियों में कैसे समाया रहता है, मेरे शोध का यह भी सदैव एक विषय रहा है। इन सबके अलावा मुझे यह बात सबसे अधिक आश्चर्यजनक लगती है कि करोड़ों की भीड़ वाले इस देश के सभी ज्योतिषियों की नज़रें अक्सर मुझी पर क्यों टिकी रहती हैं।
दरअसल प्रातः किसी भी अखबार के पन्ने पलटते समय जब भी मेरी नज़रें उसमें प्रकाशित अपने दैनिक भविष्यफल पर पड़ती हैं तो प्रायः मुझे बस यही लगता है कि मेरी राशि में लिखी बातें अधिकांशतः मुझे ही केंद्र में रखकर लिखी गई हैं। करोड़ों की भीड़ में ज़्यादातर पत्र- पत्रिका के ज्योतिशाचार्यों का प्रायः मेरे जीवन के इर्द-गिर्द ही घूमते रहना मुझे अजीब सा लगता है।
भले ही किसी के गले से नीचे यह बात न उतरे कि जिस संसार में ‘म’ से ‘मनुआ’ और ‘म’ से ‘माननीय मनमोहन सिंह’ और ‘मुशर्रफ’ या ‘ब’ से ‘बच्चू लाल’ और ‘ब’ से ‘बुश’ का नाम एक साथ शुरू होता हो वहॉं सभी की ज़िंदगियॉं चंद अक्षरों की राशि में कैसे समा सकती हैं, इसके बावजूद अनेक वैज्ञानिक और गैर अंध विश्वासी प्रकृति के भी बहुत कम लोग ही ऐसे होंगे जो प्रातः अखबार हाथ में लेने के पश्चात् चोरी-छिपे ही सही अपना दैनिक भविष्यफल न देखते-पढ़ते हों।
खैर मैं बात कर रहा था उन ज्योतिषाचार्यों की जो हर पल मेरे ही जीवन में ताक-झॉंक करने की कोशिश में लगे रहते हैं।
मुझे मेरी राशिफल ने पहली बार उस समय चौकन्ना किया जब अपनी कंपनी में पदोन्नति से संबंधित एक कानूनी लड़ाई जीतने के बाद मैंने अपनी राशिफल में लिखा पाया कि ‘विभागीय मामले में कानूनी लड़ाई जीतने के बाद भी आपको उसका लाभ मिल पायेगा इसमें संदेह ही है।’ और अंततः राशि में लिखी बातों को हवा में उड़ा देने के बावजूद वही हुआ जो ज्योतिषाचार्य जी की भविष्यवाणी थी। कंपनी के जिन कर्मचारियों की मेहरबानी ने मुझे पॉंच साल तक अदालत का घंटा बजाने को मजबूर किया था, उन्होंने अदालती निर्णय में ऐसा पेंच निकाला कि पुनः अगले पॉंच साल अदालत की चौखट पर अपनी इकलौती नाक रगड़ने की बजाए मैंने यथास्थिति बनाये रखने में ही अपनी भलाई समझी। मैं प्रायः उन लोगों से प्रभावित रहा हॅंू जो ग़लत बातों और अन्याय करने या सहने के सदैव विरोधी रहे हैं। अतः अपनी दो कौड़ी की हैसियत को नज़रअंदाज़ करते हुए सही-ग़लत को लेकर मैं अक्सर किसी न किसी से भिड़ा ही रहता हॅंू। ऐसे में जब न तब मेरी राशि मेरे पथप्रदर्शक का काम करते हुए मुझे सुरक्षा भी प्रदान करती है। एक दिन ऑफिस में शाम को मुझे पता चला कि मेरी किसी फाइल को लेकर मेरे साहब मेरी ताजपोशी करने वाले हैं परन्तु अचानक किसी मीटिंग में चले जाने के कारण मेरी ताजपोशी के कार्यक्रम का मुहूर्त उन्हें रद्द करना पड़ा। पर मुर्गे का बाप कब तक खैर मनाता। अगले दिन मुझे अपने बास के खास कार्यक्रम का प्रतिभागी बनना ही था। उस दिन मेरी राशि में साफ-साफ लिखा था कि, ‘आज कार्यक्षेत्र में तनाव की स्थिति बन सकती है। बॉस की ग़लत बातों का भी विरोध न करने में ही अपनी भलाई समझें। उनकी फटकार को गंभीरता से न लें।’ राशिफल में पूर्ण विश्वास जम जाने के कारण ही बॉस और स्वयं मुझसे खुंदक खाये कुछ सहकर्मियों के उकसाये जाने के बावज़ूद उस दिन मैं पूरे समय बॉस के सामने सिर झुकाये ही बैठा रहा। बॉस की सही क्या ग़लत बातों का भी मुझ पर कोई असर नहीं हुआ। और मैं अपनी न की गई ग़लतियों को भी अपने सिर ओढ़ता रहा। मेरी इस सहनशीलता और चुप्पी को भी मेरे बॉस ने अपना अपमान समझा। जब उन्होंने झल्लाकर मुझसे हर वक्त ग़लत बातों पर भी बराबरी से टक्कर लेने वाली मुद्रा त्यागकर चुपचाप सिर झुकाये बैठे रहने का राज़ पूछा तो मैंने उस दिन के अखबार में छपी अपनी राशिफल की कटिंग उनके सामने रख दी।
एक दिन कार्यालय से घर जाते समय बस में सीट को लेकर एक बेअक्ले पहलवान टाइप व्यक्ति ने रौब गॉंठकर मुझे टक्कर लेने के लिये उकसाया। मुझे लगा कि कोई अदृश्य शक्ति चूहे के मुंह से शेर की दहाड़ निकलवाने का प्रयत्न कर रही है। मैंने तत्काल उस दिन के एक दैनिक समाचार पत्र में छपी अपनी राशिफल का मार्गदर्शन प्राप्त किया। राशिफल में मुझे साफ चेतावनी दी गई थी कि, ‘यात्रा के दौरान किसी चौड़े शरीर वाले व्यक्ति से कहा-सुनी के आसार हैं। बेहतर यही होगा कि ऐसे समय बचाव की मुद्रा में रहें वरना शारीरिक क्षति पहुॅंचना संभव है।’ और फिर मैंने उस पहलवान की झगड़ा मोल लेने की तमाम कोशिशों को नज़रअंदाज करते हुए, उससे पीछा छुड़ाने में ही अपनी भलाई समझी।
अपनी मेहमाननवाजी और मित्रता निभाने के प्रिय शौक के चलते जिस माह के आखिरी दिन मैं अपने घर में आने वाले पॉंचवें मेहमान की अगवानी में जुटा हुआ था उसी दिन मेरी राशिफल में छपा था, ‘अस्थाई सुख और मैत्रीपूर्ण संबंधों की इच्छा आपको अपनी वास्तविक ज़िम्मेदारियों से भटका रही हैं। परिवार के सदस्यों के प्रति भी गंभीरता से सोचें। बाहर के लोगों पर पैसा लुटाने से आप बड़े आदमी नहीं बन सकते, अगर कुछ करना है तो अपने घर से शुरूआत करें।’

शुरू-शुरू में राशिफल में लिखी जो बातें मेरे लिये तनाव का कारण बनती थीं अब वे ही लगातार मेरा मार्गदर्शन करती दिखाई पड़ती हैं। इन सबके बावजू़द मुझे किन्हीं अखबारों के ज्योतिषाचार्यों से कुछ शिकायतें भी हैं। ‘पत्नी से तनाव मिलेगा’, ‘संतान दुख का कारण बनेगी’, ‘घर पर मेहमान पधारेंगे’, ‘अनावश्यक खर्च होगा’, ‘सड़क पर चलते समय सावधानी बरतें’ या ‘स्वास्थ्य प्रभावित होगा’ और ‘कार्य क्षेत्र में लापरवाही का खामियाजा भुगतना पड़ेगा’ जैसी राशिफल में लिखी बातें फिर भी बर्दाश्त की सीमा में रहती हैं परन्तु जब कभी मुझे बढ़ती उम्र के बावज़ूद अपनी राशि में, ‘रोमांस के अवसर मिलेंगे’, ‘कोई सुंदर युवा महिला आपके करीब आयेगी’, ‘पुरानी प्रेमिकाओं से सामना होगा’ या ‘किसी अन्जान युवती के साथ डिनर का लुत्फ उठायेंगे’ अथवा ‘प्यार के मामले में अंतिम अवसर का लाभ उठायें’ जैसे वाक्य देखने को मिलते हैं तो ठंड के मौसम में भी मैं पसीने से नहा जाता हूॅं। यही नहीं मुझे श्रीमती जी की नज़रों से बचाकर अखबार को कहीं छुपाने पर भी मज़बूर होना पड़ जाता है। एकाध बार ‘रोमांस के अवसर प्राप्त होंगे’ जैसी भविष्यवाणियों के चलते, किसी महान व्यक्ति के नाम पर बने बदनाम पार्क के पिछले दरवाज़े से उसमें घुसने की कोशिश भी करनी चाही तो वहॉं गहरी नींद में भी मुश्तैदी से पहरेदारी करती पुलिस को देखकर कदम ठिठक गये। कभी टीवी के समाचार चौनलों की अतिशय सक्रियता भी आड़े आ गई जो किसी व्यक्ति के बाहर तक उजागर अच्छे गुणों को हाईलाइट करने की बजाए उसके अंदर के दबे-कुचले शैतान को जनता के सामने लाने हेतु ज़्यादा प्रयत्नशील रहते हैं। इसके अलावा आज दूसरों के सुख से चिंतित मित्र और पड़ौसी आदि भी टीवी के रंगीन पर्दे पर मुंह पर तौलिया ढंके मित्र की एक झलक देखने की आस में हर पल समाचार चैनलों पर अपनी नज़रें गड़ाये बैठे रहते हैं।